क्रॉम्पटन ग्रीव्स के लिए कैनेडा में चुनौतियां बरकरार

मुंबई – अवंता ग्रुप की प्रमुख कंपनी क्रॉम्पटन गीव्स के लिए वित्त वर्ष 2013 काफी चुनौतीपूर्ण रहा और पिछले दस वर्षों में पहली बार कंपनी ने 36 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया। इस दौरान कंपनी को मांग में कमी, कमजोर मार्जिन, विदेशी कारोबार के पुनर्गठन की लागत और आपूर्ति में देरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। माना जा रहा है कि कंपनी को अपने मुनाफे को पटरी पर लाने में करीब 12 महीने और लग सकते हैं।
राजस्व और ऑर्डर प्रवाह सकारात्मक रहने के कारण अगले वित्त वर्ष में कंपनी की ठोस वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है। पिछले सप्ताह कंपनी के निदेशक मंडल ने 265 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर पुनर्खरीद को मंजूरी दी है। कंपनी ने इसके जरिये शेयर बाजार को संकेत दिया है कि उसकी स्थिति अब भी मजबूत है।
क्रॉम्पटन ग्रीव्स को मुख्य रूप से अपने विदेशी कारोबार के कारण घाटा हुआ। कंपनी ने बेल्जियम में अपना विनिर्माण रोक दिया है और अपने अधिकांश कारोबार को हंगरी में स्थानांतरित कर दिया है। इससे कंपनी को परिचालन लागत में बचत होने की उम्मीद है। चालू वित्त वर्ष के दौरान कंपनी घाटे में चल रहे कैनेडा के अपने ट्रांस्फॉर्मर संयंत्र को पुनर्गठित कर सकती है लेकिन इसके परिणाम वित्त वर्ष 2014 के अंत तक या वित्त वर्ष 2015 के आरंभ तक सामने आएंगे।
क्रॉम्पटन ग्रीव्स का कारोबार तीन प्रमुख इकाइयों- बिजली कारोबार, उपभोक्ता वस्तु कारोबार और औद्योगिक प्रणाली कारोबार- में विभाजित है। कंपनी के कुल राजस्व में उसके बिजली कारोबार का योगदान सबसे अधिक (60 फीसदी) है। इसके बाद उपभोक्ता वस्तु कारोबार का योगदान 21 फीसदी और औद्योगिक प्रणाली कारोबार का योगदान 15 फीसदी है। क्रॉम्पटन ग्रीव्स को अपनी मूल भारतीय कंपनी से 55 से 60 फीसदी राजस्व प्राप्त होता है। शेष राजस्व की प्राप्ति विदेशी सहायक कंपनियों से होती है जो यूरोप, अमेरिका और इंडोनेशिया में कारोबार करती हैं।
बहरहाल, कंपनी का घरेलू कारोबार मुनाफे में है लेकिन विदेशी कारोबार के कारण वित्तीय परिणाम प्रभावित हो रहा है। वित्त वर्ष 2012-13 में एकल आधार पर कंपनी ने 445 करोड़ रुपये का मुनाफा दर्ज किया था जबकि समेकित आधार पर उसे 36 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। बिजली उत्पादों की कमजोर मांग और कचे माल विशेषकार तांबे के दाम बढऩे के बावजूद उत्पादों के दाम घटने के कारण वित्त वर्ष 2011-12 कंपनी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा था।
पिछले साल मई में कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी लॉरेंट डिमॉर्टियर के नेतृत्व में प्रबंधन ने तीन वर्षीय एजेंडे का अनावरण किया था। इसके तहत उत्पादों को सुधारने और कचे माल की आपूर्ति को समेकित करने के अलावा चीन में एक आपूर्ति कार्यालय स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। साथ ही कंपनी के विनिर्माण संयंत्रों को पुनर्गठित करने की भी योजना बनाई गई थी। कंपनी ने उम्मीद जताई थी कि इससे एबिटा में 450 आधार अंकों का सुधार दिखेगा।
कंपनी ने विश्लेषकों से कहा था कि वित्त वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही के बाद उसके बेल्जियम संयंत्र का पुनर्गठन पूरा हो जाएगा और वह न मुनाफा और न ही नुकसान की स्थिति में आ जाएगा।
कंपनी ने कहा था कि कैनेडा में अब लागत विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाएगा। कंपनी की एक अन्य समस्या है ट्रांस्फॉर्मरों की कीमतों में गिरावट विशेषकर खाड़ी क्षेत्र के बाजारों में। वित्त वर्ष 2013 के दौरान कंपनी की कुल बिक्री में कैनेडा संयंत्र का योगदान करीब 3 फीसदी रहा लेकिन उससे 1 करोड़ डॉलर का घाटा भी हुआ।
विश्लेषकों का मानना है कि कंपनी को मुनाफे में आने में कुछ महीनों का वक्त लग सकता है। ब्रोकिंग फर्म एडेल्वाइट ने अपने हालिया अनुसंधान नोट में कहा है, हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2014-15 से पहले कंपनी के मुनाफे में विदेशी संयंत्रों का योगदान खास नहीं रहेगा। प्रमुख बाजारों में तगड़ी प्रतिस्पर्धा और आंतरिक कुशलता में ह्रïास आदि कारणों से कंपनी की चुनौतियां बरकरार रहेंगी।Ó विश्लेषकों ने यह भी कहा कि निकट भविष्य में कंपनी के मार्जिन पर दबाव बना रह सकता है।

 

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