जायकों का स्वाद चखता देश

आर.के.सिन्हा

आप छोटे से बड़े किसी भी शहर या किसी भी महानगर का चक्कर लगा लीजिए। आपको एक बात सभी जगहों में एक जैसी ही मिलेगी। वह है भांति-भांति के व्यंजनों की विशेषताओं वाली रेस्तरांओं का खुलते जाना। इसी तरह से फूड फेस्टिवलों की भी सुनामी सी आ गई है। जाहिर है,ये नए-नए व्यंजनों के रेस्टोरेंट इसलिए खुल रहे हैं क्योंकि अब सारा देश सुस्वादु भोजन करने को लेकर पहले से अधिक तत्पर और इच्छुक रहने लगा है।   इसे दूसरे अर्थों में कह सकते हैं कि समाज में बहार खाने की प्रवृति भी बढ़ रही है और पैसा भी पर्याप्त रहने लगा है I हम सबका चटोरापन भी क्रमश:बढ़ता ही जा रहा है। अब घर की रसोई में बने भोजन भर से ही संतोष नहीं रहा। अब तो किसिम-किसिम के सामिष-निरामिष व्यंजन चखने की प्रवृति बढ़ गयी हैं। नया-अनोखा खाने-चखने की यात्रा तो अंतत है।  

आप कह सकते हैं इसका एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि जुबान का स्वाद सारे देश को एक सूत्र में बांध रहा है। अब दिल्ली वाला इंसान मात्र छोले-कुल्चे,राजमा चावल या कढ़ी चावल वगैरह खाकर ही संतुष्ट होने को राजी नहीं है] उसे कुछ दिनों के बाद उत्तर भारतीय व्यंजनों की बजाय दक्षिण भारतीय, मारवाड़ी, बंगला, उड़िया, मराठी, गोवा व् गुजराती वगैरह व्यंजन भी चखने की इच्छा होती हैं। अगर वो उसे घर में उपलब्ध नहीं हैं, तब वो अपने घर के आसपास बने रेस्तरां का सहारा ही लेता है। उसे मसाला डोसा, इडली,दही चावल या गुजराती व्यंजन जैसे ढोकला और फाफड़ा ठेपला के साथ भी न्याय करना होता है। गुजराती शाकाहरी भोजन स्वाद के छहों रसों से भरपूर होने के साथ-साथ विविधता लिए रहते हैं।  इनमें मिठास का पुट भी रहता है, क्योंकि सभी गुजराती व्यंजनों में थोड़ा सा गुड़ का प्रयोगभी अवश्य ही रहता है। चूंकि गुजारती मूल के लोग देश के बाहर भी भारी संख्या में बसते गए हैं, इसलिए आपको अब दुनिया के लगभग सभी प्रमुख शहरों में गुजराती रेस्तरां भी मिल जाएंगे।

पिछले 15-20 वर्षों के दौरान देश के लाखों नौजवान गावों से एक शहर से दूसरे शहर में नौकरी करने के लिए जाने लगे हैं। इसलिए बाजार की मांग के अनुसार ही , अब रेस्तरां भी खुलने लगे हैं। आपको देश की आईटी की राजधानी बैंगलुरू में उत्तर भारतीय भोजन परोसते अनेको रेस्तरां मिल जाएंगे। इनमें हर इंसान के बजट के हिसाब से थाली मिल रही है। यह स्थिति कुछ साल पहले तक नहीं थी। चूंकि युपी और बिहार के नौजवान और मेहनतकश सारे देश में पहुंच रहे हैं, इसलिए पूर्वी यूपी और बिहार की शान लिट्टी चोखा बेचने वाली दूकानें दिल्ली के लक्ष्मी नगर से लेकर मुबई के महीम और नवी मुंबई में मिल जाएंगी। इनका जायका सिर्फ पूर्वांचल वाले ही नहीं ले रहे हैं। इन पर सभी टूट पड़ रहे हैं। कुछ समय पहले ही चैन्नई से दिल्ली आए एक प्रमुख आटो कंपनी के सीआईओ से मिलना हुआ। वे मुझसे पूछ रहे थे कि दिल्ली में उच्च कोटि के छोले कुलचे कहां पर मिलेंगे? उनका कहना था कि हालांकि उन्हें अपने शहर में छोले-कुल्चे से लेकर अन्य तमाम उत्तर भारतीय व्यंजन मिल जाते हैं, पर वो दिल्ली के मशहूर छोले-कुल्चे खाना चाहते हैं।  

अब आप गोवा ही चले जाइये। गोवा में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से पहुंचने वाले  पर्यटक गोवा की समुद्री मछली पर टूट पड़ते हैं। वे सुबह-शाम मछली ही खाते रहते हैं। इसकी एक वजह यह भी समझ आती है कि इन प्रदेशों में अच्छी क्वालिटी की ताजी मछली उपलब्ध भी तो नहीं रहती। इसलिए गोवा में  सैर-सपाटा के साथ ये पर्यटक मछली से बने व्यंजनों का जायका लेते रहते हैं। वैसे गोवा में जाकर सभी पर्यटक पोर्क विंडालू,क्रैब एक्सिक, प्रॉन बावचाओ, साना जैसे विशुद्ध गोवा के व्यंजनों को भी कसकर खाते हैं। यही हल बहार से आने वालों का चांदनी चौक की पराठे वाली गली या चंडीगढ़ हाईवे पर मुरथल के पराठों खाने की ललक का है I

आप मुंबई, बैंगलुरू, चंडीगढ़, दिल्ली वगैरह के किसी भी आवासीय मोहल्ले का ही चक्कर लगा लीजिए। वहां पर आपको शाम सात बजे से लेकर रात के 11 बजे तक मोटर साइकिल पर  आसपास के रेस्तरांओं में काम करने वाले लड़के आते-जाते दिखाई देंगे। सबके हाथों में भोजन के पैकेट होते हैं। इनके पास किसी से एक मिनट भी बात करने का वक्त नहीं है। ये स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चे हैं। ये रोज 15-20 घरों में अपने रेस्तरांओं का भोजन सप्लाई करके अपना खर्च निकल लेते हैं।  दिल्ली के बाराखंभा रोड़ मेट्रो स्टेशन के बाहर हर वक्त दो-तीन दर्जन युवक अपनी मोटरसाइकिलों के साथ खड़े होते हैं। ये सभी किसी न किसी फूड चेन से जुड़े हैं। ये आसपास के इलाकों में आर्डर पर गर्मागर्म बिरयानी से लेकर वेज-नॉन और वेज भोजन सप्लाई करते हैं। मतलब खाने- खिलाने के बहाने बहुत से नौजवानों को रोजगार भी मिल रहा है।

एक बात ये भी लगती है कि जैसे-जैसे पति-पत्नी नौकरीपेशा होने लगे हैं, तब से होटल और रेस्तरां चांदी काटने लगे हैं। कार्यशील दंपती होटलों-रेस्तराओं से भोजन मंगवाने में  कुछ आगे ही रहते हैं। इन्हें सारे दिन की मारामारी के बाद रात को किसी रेस्तरां से लजीज भोजन ही मंगवाकर खाना पसंद है।

खाने-खिलाने की चर्चा के बीच भंडारों की बात करना भी अनिवार्य माना जाएगा। अब कम से कम दिल्ली-एनसीआर में लगभग हर रोज स्वादिष्ट भोजन खिलाने वाले भंडारे आयोजित हो रहे होते हैं। इनकी संख्या मंगलवार, गुरुवार,शनिवार को तेजी से बढ़ जाती है। मंगलवार को हनुमान मंदिर, गुरुवार को साई मंदिर तो शनिवार को शनि या हनुमान मंदिर रविवार के लिए गुरूद्वारे तो हैं ही I ये पर्वों के अवसरों पर जगह-जगह चलते ही हैं। येभंडारे ज्यादातर किसी स्लम,अस्पताल, बाजार या फ्लाईओवर के आसपास चलते हैं। इधर कुछ नौजवान लोगों को भरपेट भोजन करवाते हुए मिल जाएंगे। भंडारे में एक तरह से समाजवादी व्यवस्था लागू हो जाती है। उसका भोजन चमचमाती कार चलाने वाला शख्स भी ग्रहण करता है और बिल्कुल निर्धन भी। सब साथ भोजन कर रहे होते हैं। इधर जाति,धर्म और वर्ग भेद समाप्त हो जाते हैं। राजधानी दिल्ली में आजकल बालाजी कुनबा की तरफ से लगाए जाने वाले भंडारों की बड़ी धूम है। इनके भंडारों में स्वादिष्ट छोले,कुलचे, हलवा, ब्रेड पकोड़े, मैंगों और मिल्क शेक मिलते हैं। ये बच्चों को देते हैं फ्रूटी। ये अपने को हनुमान जी के अनन्य भक्त बताते हैं। बालाजी कुनबा के मेंबर कहते हैं,हम हनुमान जी के अनन्य भक्त हैं। हम सब भूख से नफरत करते हैं। इनकी कारों पर हनुमानजी की तस्वीर वाला एक बैनर भी लगा मिलेगा । उस पर लिखा होताबालाजी कुनबा- एक परिवार भूख के खिलाफ

आप अब समझ रहे होंगें कि पूरे समाज में खाना-खिलाना बढ़ता जा रहा है। कुछेक साल पहले तक विवाह समारोहों में हलवाई पका देते थे अतिथियों के लिए भोजन। लेकिन, अब तो विवाह समारोहों में भोजन पर फोकस अधिक हुआ है। अब किसी भी शहरी शादी में आपको भोजन से पहले खोमचे के दस- पद्रंह स्टाल लगे मिल जाएँगे। इनमें आलू टिक्की,गोल गप्पे, फ्रूट चाट, भल्ले, लिट्टी-चोखा, डोसा, इडली, बड़ा, चिल्ला और हर प्रकार के शीतल पेय वगैरह मिल रहे होते हैं। अब शादियों में स्वादिष्ट हलवा ही कई  प्रकार का उपलब्ध रहता  है। पहले मूंगी की दाल या गाजर का हलवा ही रहता था। यानी नए भारत का एक चेहरा यह भी है। जिसमें खाना और बस खाना है। शर्त सिर्फ इतनी सी है कि खाना स्वादिष्ट हो।

 

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

You might also like

Comments are closed.