लालू को यादवों के गढ़ में मात देने की तैयारी में भाजपा

11_06_2015-10laluravav

नई दिल्ली,  हाथ में विकास का झंडा और जमीन पर जातिगत समीकरण का खूंटा। राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण बिहार फतह के लिए भाजपा दोनों के बीच समन्वय बनाकर काम करने में जुट गई है।
संभव है कि यादव के नेता माने जाने वाले लालू प्रसाद को उनके घर में ही पछाड़ने की कोशिश हो और उनसे ज्यादा यादव उम्मीदवार भाजपा के खाते में हों। उम्मीदवारों के चयन में विशेष ध्यान उस स्थान पर होगा जहां नीतीश का उम्मीदवार हो।
नीतीश के ब्रांड वैल्यू से वाकिफ है भाजपा
भाजपा को यह अहसास है कि जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। लालू से गठबंधन के बावजूद नीतीश की एक ब्रांड वैल्यू है जिसके जरिये वह फ्लोटिंग वोटर को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे।
‘बिहार 2025 वृहद कार्यक्रम’ की घोषणा कर नीतीश ने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अभियान शैली को भी अपना लिया है। उम्मीदवारों के चयन के जरिये महादलित वर्ग में अपनी कुछ पैठ बचाने की भी कोशिश होगी। यादव के लालू नेता हैं और लोकसभा चुनाव की लहर में भी इसका संकेत मिला था।
जातिगत समीकरण साधने में कोई चूक नहीं करेगी भाजपा
ऐसे में भाजपा यूं तो अपने शासन वाले राज्यों में विकास की गति को दिखाकर यह बताएगी कि असली विकास वही कर सकती है, लेकिन जमीन पर जातिगत समीकरण साधने में कोई चूक नहीं करेगी। यह बताने की कोशिश होगी कि लोकसभा में भी सबसे ज्यादा यादव सांसद भाजपा से हैं।
सूत्र के अनुसार संभव है कि विधानसभा चुनाव मे भी भाजपा के यादव उम्मीदवारों की संख्या राजद से भी ज्यादा हो। दरअसल, जदयू और कांग्रेस, राकांपा के साथ गठबंधन के बाद लालू प्रसाद का इतनी सीटें ही न रहे कि वह आधे से ज्यादा पर यादव उम्मीदवार उतार सकें।
रघुवर दास को बिहार बुलाने की तैयारी
वहीं तेली समुदाय को एकमुश्त अपने पाले में लाने के लिए भाजपा झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी बिहार बुलाने की तैयारी में है। संभव है कि अगले एक दो सप्ताह में उन्हें बिहार में सम्मानित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी का हवाला देते हुए पहले भी यह कार्ड खेला जा चुका है। बताते हैं कि जहां जदयू का उम्मीदवार होगा, वहां विशेष रणनीति होगी।
यह रणनीति जदयू नेतृत्व के खिलाफ राजद कार्यकर्ताओं के रोष को ध्यान में रखते हुए तय की जा सकती है। गौरतलब है कि भाजपा इस बार 180-185 सीटों पर खुद अपना उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे में नए उम्मीदवारों को समाहित करने में परेशानी नहीं होगी।

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