उपचुनाव : नरेंद्र मोदी को खारिज करना नीतीश कुमार को पड़ा महंगा?

narendramodi-nitishkumar_505_040913030126नई दिल्ली- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी(राष्ट्रीय जनता दल) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के लिए महाराजगंज सीट पर जीत प्रदेश में नीतीश कुमार के खिलाफ लोगों की तेजी से बढ़ती नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पिछले 7 साल में यह पहली बार हुआ है, जब लोकसभा उपचुनाव में आरजेडी से करारी हार मिली।
नीतीश कुमार के लिए महाराजगंज सीट पर जीत बीजेपी से चल रही तल्खी के बीच बेहद अहम थी। वह न केवल लालू प्रसाद यादव को चुप कराना चाहते थे बल्कि इस जीत के बाद बीजेपी को भी संदेश देना चाहते थे कि जेडी(यू) अकेले काफी है। नीतीश कुमार का यही ओवर-कॉन्फिडेंट घातक साबित हुआ। इस चुनावी नतीजे से बीजेपी भी नीतीश कुमार को संदेश देने के मूड में थी कि वह बिहार में अकेले काफी नहीं हैं।
नीतीश कुमार महाराजगंज में जातीय गणित को समझने में बुरी तरह से नाकाम रहे। जेडी (यू) को लग रहा था कि कांग्रेस और आरजेडी के दो राजपूत कैंडिडेट के बीच भूमिहार वोट निर्णायक साबित होगा। नीतीश कुमार ने यही सोचकर भूमिहार जाति के प्रत्याशी राज्य के शिक्षा मंत्री पीके शाही को मैदान में उतारा। हकीकत यह है कि राजपूत बहुल इस इलाके में नीतीश के दांव के उलट राजपूतों की गोलबंदी आरजेडी के पक्ष में गई।
कुछ महीने पहले ही नीतीश कुमार ने महाराजगंज जिला जेडी(यू) अध्यक्ष को हटाकर अपनी जाति के शख्स को अध्यक्ष बनाया था। जिसे अध्यक्ष पद से हटाया गया वह राजपूत जाति का था। जेडी(यू) के स्थानीय नेता, जो कि ज्यादातर राजपूत जाति के थे वे उम्मीदवारी के फैसले पर बेहद नाराज थे। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान भी आरजेडी उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह के पक्ष में काम किया।
2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर महाराजगंज के 6 विधानसभा सीटों में से 5 पर जीत हासिल की थी। इस उपचुनाव में जेडी(यू) बीजेपी को खारिज करके चल रही थी। चुनावी रणनीति बनाने में भी बीजेपी को पूरी तरह से नीतीश ने अलग रखा। नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं को चुनाव प्रचार तक के लिए नहीं कहा। हालांकि जेडी(यू) प्रत्याशी के पक्ष में बीजेपी के सीनियर नेता और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने प्रचार किया था, लेकिन मोदी ने खुद ही पहल की थी। नीतीश के इस रुख पर बीजेपी नेताओं के मन में नीतीश की घमंडी छवि और मजबूत हुई।
इस क्षेत्र में बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने जेडी(यू) को समर्थन करने से साफ इनकार कर दिया। बीजेपी कार्यकर्ता नीतीश कुमार से पहले से ही नरेंद्र मोदी की आलोचना से नाराज चल रहे थे। गौरतलब है कि नीतीश ने कह दिया है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया जाता है तो उनकी पार्टी बीजेपी से गठबंधन तोड़ लेगी। नीतीश कुमार चुनाव प्रचार के दौरन अपनी जनसभाओं में भ्रष्टाचार को लेकर लोगों को आश्वस्त करने में भी नाकाम रहे। वह अपने शासनकाल की लालू से तुलना करके अपनी बड़ाई करते रहे लेकिन प्रशासनिक स्तर पर बढ़े रहे भ्रष्टाचार पर चुप रहे।

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