यूं ही जान जोखिम में डालकर नहीं जाते केदारनाथ

kedarnathकेदारनाथ में आई तबाही में हजारों लोग मारे गये। लेकिन ऐसा नहीं है कि केदारनाथ यात्रा में इससे पहले हादसे नहीं हुए हैं। हर साल बद्री और केदारनाथ यात्रा के दौरान तीर्थयात्री खाई में गिरकर अथवा भू-स्खलन के कारण काल के गाल में समा जाते हैं। चूंकि इस साल आसमान फटा और कुदरत के कहर ने बड़ी संख्या में श्रद्घालुओं को निगल लिया इसलिए खबऱ बड़ी है और केदारनाथ सुर्खियों में छाया हुआ है।
प्राचीन काल में बड़े बुजुर्ग ही इस तीर्थ पर निकलते थे क्योंकि इस तीर्थ के हर मोड़ पर जान का जोखिम रहता है। यह पता नहीं होता है कि कब आसमान को छूता पर्वत जमीन पर आ गिरे। जिस जमीन पर कदम पड़ रहे हैं वह वह जमीन पांव के नीचे से खिसक जाए और मौत की गोद में समा जाएं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि ब्रदी केदार के इन दुर्गम रास्तों के बारे लोगों को पता न हो। फिर लोग इस तीर्थ की यात्रा पर निकलते हैं तो इसकी भी कुछ वजहें हैं जो लोगों को जोखिम उठाने के लिए प्रेरित करती है।
शिव महापुराण के कोटि रुद्र संहिता में कहा गया है कि
केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।

तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूय च।

तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।
इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति केदारनाथ योतिर्लिंग में भक्ति-भाव रखते हुए उनके दर्शनों के लिए अपने घर से प्रस्थान करता है, किन्तु रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे वह केदारेश्वर का दर्शन नहीं कर पाता है। इस प्रकार जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है उसके बारे में यह समझना चाहिए कि उसे निश्चित ही मुक्ति मिल गई।
शिव पुराण में यह भी कहा गया है कि केदारतीर्थ में पहुंचकर केदारनाथ योतिर्लिंग का पूजन करने के बाद जो मनुष्य वहां का जल पी लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। इसलिए हर मनुष्य को केदार तीर्थ की अवश्य यात्रा करनी चाहिए।

भगवान शिव का नाम कैसे पड़ा केदार
स्कंद पुराण में भी केदार तीर्थ की बड़ी महिमा बताई गई है। इस पुराण में उल्लेख है कि एक बार माता पार्वती ने शिव जी से केदारक्षेत्र के बारे में पूछा। भगवान शिव ने बताया कि जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद, गायों में कामधेनु और सभी पुरियों में कैलाश श्रेष्ठ है, वैसे ही सम्पूर्ण क्षेत्रों में केदार क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ है और यह मुझे अत्यंत प्रिय है।
जब सृष्टि-कार्य के लिए मैने ब्रह्माजी का रूप धारण किया, तभी से परब्रह्म को जीतने के लिए मैं इस क्षेत्र में सर्वदा निवास करता हूं। इस क्षेत्र के द्वार पर नन्दी, भृंगी प्रहरी बनकर खड़े हैं। जो मनुष्य केदार यात्रा का विचार करता है, और यात्रा का कार्यक्रम बनाता है, उसके तीन सौ पीढिय़ों के पितर शिव लोक में निवास प्राप्त करते हैं। जो व्यक्ति मन, वाणी और कर्म से मेरे प्रति समर्पित होकर श्री केदारनाथ जी का दर्शन करता है उसे ब्रह्महत्या के समान पाप से भी मुक्ति मिल जाती है।

 

 

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