वंदेमातरम ‘नारे’ जो बस गए दिलों में

vande-mataram
हमारे देश को आजादी लंबी लड़ाई के बाद मिली थी। स्वतंत्रता संग्राम में हजारों लोगों ने अपनी जानें गंवाईं। इस संग्राम में लोगों के भीतर देशभक्ति का भाव भरने का काम किया कुछ ‘नारोंÓ ने। ये नारे ऐसे थे, जो लोगों की जुबां पर चढ़ गए थे। इनमें से कईओं को पीढ़ी दर पीढ़ी हम बोलते आ रहे हैं। किसने रचा इन ऐतिहासिक नारों को और क्यों ये आज भी हमें खास मौकों पर याद आ ही जाते हैं, ये सब जानते हैं रजनी अरोड़ा से
तुमने देखा होगा कि जब हम स्वाधीनता संग्राम में शहीद हुए देशभक्तों को याद करते हैं तो अक्सर ‘जय हिन्दÓ, ‘भारत माता की जयÓ जैसे नारे लगाते हैं। तुम खुद भी अपने स्कूल में इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते होगे और नारे लगाते होगे। दरअसल, हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने इसी तरह के कई नारों से देश की जनता का आह्वान किया ताकि वे आजादी की लड़ाई में शामिल हों।
इंकलाब जिंदाबाद- क्रांतिकारी भगत सिंह के इस नारे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश भर में आजादी की चिनगारी सुलगा दी थी। इस नारे को चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु जैसे इंडियन सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के क्रांतिकारी इस्तेमाल करते थे। लेकिन सबसे पहले इसे ‘लांग क्रांति लाइवÓ के रूप में कलकत्ता के मौलाना हसरत मोहानी ने इस्तेमाल किया था।
जय हिन्द- नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया, जिसके फौजी एक-दूसरे को ‘जय हिन्दÓ कहकर संबोधित करते थे। जंगे आजादी की आवाज के रूप में बोस ने इसे पहली बार 2 नवंबर 1941 को इस्तेमाल किया। हर मीटिंग के अंत में इस नारे का उपयोग करने का फैसला किया गया। बाद में भारत सरकार ने ‘जय हिन्दÓ नारे को भारतीय राष्ट्रीय नारा घोषित किया। आजादी की लड़ाई में नेताजी ने दो नारे और दिए- ‘दिल्ली चलोÓ और ‘तुम मुङो खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगाÓ।

वंदे मातरम्- यह नारा 1882 में बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनंद मठÓ में लिखी कविता का एक हिस्सा है। 1950 में डॉं। राजेन्द्र प्रसाद ने इसे देश का राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1896 में इसे पहली बार कलकत्ता कांग्रेस एसेंबली में गाया।
स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा- बाल गंगाधर तिलक ने यह नारा दिया। ब्रिटिश हुकूमत के भारतीयों के प्रति नफरत और तिरस्कार भरे रवैये से बेचैन होकर तिलक ने पूर्ण स्वराज की मांग की थी। 1890 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस असेंबली में यह घोषणा की कि पूर्ण स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, अंग्रेजों से स्वराज भीख में नहीं मांगेंगे, बल्कि इसके लिए लड़ेंगे।
अंग्रेजो भारत छोड़ों और करो या मरो- अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मुंबई में 8 अगस्त 1942 को ‘अंग्रेजो भारत छोड़ोÓ नारा दिया। यह भारत की स्वतंत्रता और ब्रिटिश साम्राय की वापसी के लिए चलाए जा रहे सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक हिस्सा था। गांधी जी ने ‘करो या मरोÓ का नारा भी दिया।
सत्यमेव जयते- मदन मोहन मालवीय ने ‘सत्यमेव जयतेÓ का नारा दिया। वे हिन्दुस्तान में विदेशी राज के खिलाफ थे। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में से एक मुंडक उपनिषद से लिया गया यह आदर्श वाक्य, आजादी के बाद राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया और आज भी भारतीय सिक्के के एक तरफ देवनागरी लिपि में लिखा हुआ दिख जाता है। तुमने भी इसे कई बार देखा ही होगा।

You might also like

Comments are closed.