प्रधानमंत्री जस्टीन ट्रुडो और जर्मन चान्सलर ओल्फ स्कोल्ज के बीच हुई हाईड्रोजन डील

– स्टीफनवीले में मिलकर दोनों नेताओं ने किया डील पर हस्ताक्षर
– दोनों देशों के मध्य हुए महत्वपूर्ण समझौतों के कारण रूस को लग सकती है आर्थिक चपत लगेगा जोर का झटका
– यूक्रेन से युद्ध के बाद रूस लगातार यूरोप को गैस के मुद्दे पर ब्लैकमेल कर रहा है। जुलाई से अब तक तीन बार उसने यूरोप को गैस की सप्लाई रोक दी है। ऐसे में यूरोपीय देशों में सर्दियों को लेकर चिंता सताने लगी है।


टोरंटो। यूरोप को गैस सप्लाई करने वाली कंपनी गजप्रोम ने कहा है कि मेंटेनेंस के चलते 31 अगस्त से 2 सितंबर तक गैस की सप्लाई पूरी तरह से बंद रहेगी। इसका एक सीधा सा अर्थ ये भी है कि रूस ने सर्दियों की शुरुआत में ही यूरोप को तगड़ा झटका देने का मन बना लिया है। वहीं यूरोप के लिए ये चिंता की बात है कि वो सर्दियां कैसे काटेगा। दूसरी तरफ यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी ने भी अपने लिए दूसरे विकल्प तलाशने शुरू कर दिए हैं। इसके तहत जर्मनी कैनेडा की तरफ देख रहा है।

जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज और कैनेडियन पीएम जस्टिन ट्रुडो (German Chancellor Olaf Scholz and Canadian PM Justin Trudeau) के बीच सोमवार को हुई मुलाकात इसका एक संकेत भर है। इस मुलाकात का सबसे बड़ा मुद्दा भी यही था। दरअसल, जर्मनी ने अब रूस के तेल और गैस से छुटकारा पाने का मन बना लिया है। तीन दिवसीय दौरे पर कैनेडा गए चांसलर ओलाफ ने एक प्रेस कांफ्रेंस में अपनी मंशा साफ कर दी। उन्होंने बताया कि वह कैनेडा से एलएनजी लेगा और पाइपलाइन के जरिए यूरोप के दूसरे देशों को भी गैस पहुंचाने का रास्ता साफ करेगा। इसके जवाब में कैनेडा के पीएम ने भी एलएनजी का प्रोडेक्शन तेज करने का विश्वास दिया है।

इस मौके पर ओलाफ ने साफ कर दिया कि वो रूस की गैस और तेल से छुटकारा पाना चाहते हैं। ओलाफ ने यहां तक कहा कि भविष्य में जर्मनी कैनेडा से हाइड्रोजन की भी खरीद करेगा। इसको लेकर मंगलवार को चांसलर ओलाफ स्कोल्ज एक बड़ी घोषणा भी कर सकते हैं। जर्मनी ने प्राकृतिक गैस के सप्लायर के तौर पर कैनेडा को विश्वसनीय बताया है।

आपको बता दें कि रूस की गैस की सबसे अधिक खपत जर्मनी करता हैं, जो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। वहीं रूस की गैस का सबसे बड़ा ग्राहक भी है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक वर्ष 2020 में रूस ने जर्मनी को करीब 42.6 अरब क्यूबिक मीटर गैस सप्लाई की थी। इसके बाद इटली में 29.2 अरब क्यूबिक मीटर, बेलारूस में 18.8 अरब क्यूबिक मीटर, तुर्की में 16.2 अरब क्यूबिक मीटर, नीदरलैंड में 15.7 अरब क्यूबिक मीटर, हंगरी में 11.6 अरब क्यूबिक मीटर, कजाखस्तान में 10.2 अरब क्यूबिक मीटर, पोलैंड में 9.6 अरब क्यूबिक मीटर, चीन में 9.2 अरब क्यूबिक मीटर, और जापान में 8.8 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई की थी। इस गैस सप्घ्लाई से उसने अरबों डालर हासिल किए थे।

जर्मनी की पूरी अर्थव्यवस्था ही रूस की गैस पर टिकी हुई है। ऐसा नहीं है कि यूरोप को होने वाली रूस की गैस सप्लाई पर अभी संकट पैदा हुआ है। ये संकट काफी समय से चलता आ रहा है। रूस को इस बात का विश्वास है कि यूरोप उसकी गैस के बिना चल नहीं सकता है। यही वजह है कि वो यूरोप को गैस के नाम पर ब्लैकमेल कर रहा है। जुलाई में रूस ने यूरोप को होने वाली गैस सप्लाई दो सप्ताह से अधिक समय के लिए रोक दी थी। इससे सभी यूरोपीय देशों में परेशानी बढ़ गई थी। लेकिन, इससे कुछ छोटे देशों ने सबक भी लिया है। जानकारों का भी यहीं मानना है कि यूरोप को गैस की सप्लाई न करने का दांव रुस को भारी पड़ सकता है।

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