काबुल से आई मुरवरीद जई का पूरा जीवन कैनेडा में आकर बदल गया

The whole life of Murvarid Zai, who came from Kabul, changed after coming to Canada.

– दो वर्ष पूर्व कैनेडा आई मुरवरीद ने बताया कि यहां महिलाओं के लिए शिक्षा और समानता के समान अवसर देखकर उसे जीवन जीने की नई प्रेरणा मिली

Toronto : टोरंटो। मुरवरीद जई नामक महिला को काबुल की तानाशाही को छोड़कर कैनेडा आएं आज पूरे दो वर्ष बीत गए, पिछले दो वर्षों में उसका जीवन ही जैसे बदल गया हो, पत्रकारों से इस संबंध में चर्चा के दौरान उन्होंने माना कि इस देश में महिलाओं को मिलने वाली छूट अद्वितीय हैं, यहां महिलाओं के लिए समान शिक्षा व कौशल के साधन बहुत अधिक अच्छे हैं। मुरवरीद जई अफगानिस्तान से कैनेडा आई महिलाओं के लिए कार्य करने वाले संगठन की वरिष्ठ निदेशक हैं जो इस संबंध में अनेक प्रकार के कार्यों से जुड़ा हुई हैं।

मुरवरीद ने मीडिया को यह भी बताया कि वह पूरी दुनिया की उन पीडि़त महिलाओं के लिए कार्य करना चाहती हैं, जो अपने ही देश में लिंग भेद का शिकार बनी हुई हैं, उन्होंने बताया कि वह गत 15 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान छोड़कर कैनेडा आई थी, इस मिशन में लगभग 165 कैनेडियनस को भी आजाद करवाया गया था, जिसमें से अफगानी सैनिकों द्वारा सात नागरिकों को मार दिया गया था। कैनेडा में आकर उन्होंने देखा कि कैनेडा में महिलाओं को उनका उचित सम्मान दिया जाता हैं, लड़कियों को शिक्षा के लिए उचित अवसर दिए जा रहे हैं, वहीं अफगानिस्तान में जब से तालिबानी सरकार बनी हैं, तब से देश एक ओर वित्तीय संकट से गुजर रहा हैं, वही दूसरी ओर महिलाओं का उत्पीडऩ बढ़ रहा हैं, जिसके कारण दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अफगानिस्तान की महिलाएं कहीं पीछे हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2021 में तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में आया था।

इसके सत्ता में आने के बाद से लेकर अब तक कई नियमों में बदलाव हुए हैं। महिलाओं की स्थिति लगातार खराब हो रही हैं। तमाम ऐसी महिलाएं हैं, जो दूसरों के घरों में काम करके पैसा कमाती थीं। लेकिन तालिबान राज आने के बाद वह भी बंद हो गया हैं। अपनी सहकर्मी के बारे में बताते हुए मुरवरीद ने कहा कि हेरात में रह रही विधवा जामिया ने आठ साल पहले एक आत्मघाती हमले में अपने पति को खो दिया था। उसकी 18 वर्षीय एक बेटी हैं, जो नेत्रहीन है और उसके 20 वर्षीय बेटे ने एक बारुदी सुरंग में विस्फोट के दौरान अपने दोनों पैर गंवा दिएं यूनिवर्सिटी ऑफ हेरात में पूर्व लेक्चरर अहमद ने मीडिया को बताया था कि जामिया घरेलू सहायिका के रुप में काम किया करती थी। वह लोगों के घरों में खाना पकाती थी।

इससे होने वाली आय से वह अपनी बेटी और बेट का दो वक्त की रोटी मुहैया कराने में सक्षम थी, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत कायम होने के बाद से उसके लिए अपने बच्चों का पेट भरना बेहद मुश्किल हो गया है। अफगानिस्तान में अभी 97 प्रतिशत लोग गरीबी में जी रहे हैं, जबकि 2018 में यह आंकड़ा 72 प्रतिशत था। अंरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगठनों में महिलाओं के काम करने और सार्वजनिक स्थानों पर उनके आने-जाने पर तालिबान द्वारा लगाए गए हालिया प्रतिबंध के बाद उनके लिए काम कर पाना मुश्किल हो गया है। मौजूदा स्थिति के कारण अफगानिस्तान की कामकाजी महिलाओं के लिए जीवन चलाना बहुत अधिक मुश्किल हो गया हैं, जिसके लिए अब वे दूसरे देशों में शरण ले रही हैं और अपने जीवन को इसी प्रकार से सुधारने का कार्य कर रही हैं।

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