माकपा में खुलकर सामने आए मतभेद

नई दिल्ली। लोकसभा और अन्य चुनावों में लगातार हार के बाद वरिष्ठ माकपा नेताओं ने सोमवार से पार्टी की संगठनात्मक रिपोर्ट पर चर्चा शुरू कर दी। रिपोर्ट में चुनाव में खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार पार्टी की कमियों व कारणों का जिक्र किया गया है।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि माकपा की केंद्रीय समिति के एक धडे़ का मानना है कि अगर संगठन ही मजबूत न रहा तो कोई भी राजनीतिक-रणनीतिक कोशिश सफल नहीं होगी। उनके इस मत को मानते हुए पार्टी ने इस पर चर्चा शुरू की। लगभग 100 सदस्यीय केंद्रीय समिति की रविवार से नई दिल्ली में शुरू हुई चार दिवसीय बैठक में पहले पार्टी के आधिकारिक राजनीतिक दस्तावेज के मसौदे पर चर्चा हो रही थी कि पोलित ब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने एक नया मसौदा पेश कर दिया। उनके इस कदम से पार्टी के अंदरूनी मतभेद खुलकर सामने आ गए।

येचुरी के ‘वैकल्पिक’ मसौदे के बारे में पूछे जाने पर वरिष्ठ माकपा नेता बासुदेव आचार्य ने कहा कि यह कोई वैकल्पिक मसौदा नहीं था। इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है। कई मसौदे पेश किए गए हैं। इस लोकतांत्रिक मंच पर सभी पार्टी सदस्यों को अपने विचार रखने का अधिकार है। सभी विचारों पर यहां चर्चा की जाती है।

आचार्य ने कहा कि इस चर्चा के बाद जो अंतिम दस्तावेज सामने आएगा, वह सभी विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाला होगा और अप्रैल 2015 में होने वाली पार्टी के महासम्मेलन में इस बारे में अंतिम फैसला लिया जाएगा।

एक अन्य माकपा नेता ने कहा कि हम विभिन्न राजनीतिक शैलियों पर चर्चा कर रहे हैं और इसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है, जैसा कि मीडिया पेश कर रहा है।

केंद्रीय कमेटी की बैठक में येचुरी ने पांच पृष्ठों की रिपोर्ट पेश की है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि वह माकपा द्वारा 1978 में जालंधर की महासभा में स्वीकार किए प्रस्तावों के समर्थन में है। जिसके अनुसार माकपा धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गैर कांग्रेस और भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाने का नेतृत्व करेगी।

You might also like

Comments are closed.