यहां भी छा सकता है ‘मेक इन इंडिया’

नई दिल्ली , भले ही अधिकांश जटिल मेडिकल उपकरण अभी विदेश से मंगवाने पड़ते हों, लेकिन अगले कुछ वर्षो में ही मोदी सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ नारा इस क्षेत्र में भी साकार हो सकता है। अगले 12 साल में भारत में इस कारोबार में आठ गुना तक बढ़ोतरी लाई जा सकती है। जानकारों का दावा है कि दवा से अलग रखकर नियमित किया जाए तो यह लक्ष्य आसानी से पाया जा सकता है।

खून में ग्लूकोज की जांच करने वाले ग्लूकोमीटर से लेकर हृदय में लगने वाले इंप्लांट तक की बढ़ती मांग के बावजूद अब तक मेडिकल उपकरणों पर निगरानी के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। 14 हजार तरह के छोटे-बड़े उपकरणों वाले इस कारोबार को अब तक दवा की ही श्रेणी में रखा गया है। ऐसे में मेडिकल उपकरण उद्योग के प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य मंत्रालय और भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) को मेडिकल तकनीक को दवा से अलग रखकर नियमन व्यवस्था करने की सलाह दी है।

‘एडवांस्ड मेडिकल टेक्नोलॉजी’ (एड्वामेड) के इंडिया वर्किग ग्रुप के प्रमुख संजय बनर्जी कहते हैं, औषधि और सौंदर्य प्रसाधन कानून में संशोधन की कवायद चल रही है। प्रस्तावित संशोधन विधेयक में सरकार ने मेडिकल उपकरणों को अलग से परिभाषित किया है। हालांकि, लोगों को सुरक्षित, भरोसेमंद और सस्ती दर पर मेडिकल उपकरण उपलब्ध करवाने के लिए जरूरी है कि नियमन के पूरे ढांचे में उपकरणों के लिए दवा से अलग व्यवस्था की जाए। साथ ही भारत में भी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप ही इनके लिए मानक तय किए जाएं।

उद्योग चैंबर सीआइआइ के लिए तैयार की गई बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की ताजा रिपोर्ट बताती है कि नियम-कानूनों में जरूरी सुधार किया जाए तो भारत में वर्ष 2025 के अंत तक मेडिकल उपकरण उद्योग 50 अरब डॉलर का हो सकता है। ऐसे में भारत में 20 अरब डॉलर के उपकरण अतिरिक्त निर्मित होंगे। यह आंकड़ा 2013 में भारत में 6.3 अरब डॉलर तक सीमित रहा। इस कारोबार में अधिकांश जटिल उपकरण आयात होते हैं।

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