जंजीर

11slid1ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं। इसलिए जब तक बैठने के लिए कहा न जाए खड़े रहो..
1973 में आयी अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर का ये संवाद आज सन 2013 में अगर किसी अनुभवी कलाकार को भी बोलने के लिए कहा जाएगा तो वो भी दो-चार बार सोचेगा। बात केवल राम चरण तेजा जैसे दक्षिण भारतीय अभिनेता की नहीं है, जो अपने गढ़ में सुपरहिट माने जाते हैं। दरअसल, यंग एंग्री मैन का फ्रेम ही कुछ ऐसा है कि इसके खांचे में खुद को ढालना इतना भी सरल नहीं है। ये बात इस जंजीर को देखकर समझी जा सकती है। इस लिहाज से इसे पुरानी जंजीर की रीमेक कहना भी ठीक न होगा। क्योंकि अगर पुरानी जंजीर की कहानी की बात को अलग रख दें तो इस नई जंजीर में तुलना जैसा तथ्य जोडऩा भी बेमानी होगा।

खैर, अब इस नई जंजीर की कहानी को फिर से क्या बयां किया जाए। पुरानी जंजीर की ही तरह इसमें भी एक जोशीला, ईमानदार और अपने अतीत से जूझता पुलिस अफसर है, नाम है एसीपी विजय खन्ना (राम चरण तेजा), जिसने नौकरी कम की है और ट्रांसफर ज्यादा झेले हैं। विजय के इलाके में एक व्यक्ति को जिंदा जला दिया जाता है। इस हादसे की एकमात्र गवाह माला (प्रियंका चोपड़ा) को विजय को हर हालत में कोर्ट में पेश करना है। मामले की तह तक जाने के लिए विजय को शेरखान (संजय दत्त) की मदद लेनी पड़ती है, जो अपने जमाने का फन्ने खां है। साथ ही विजय को एक क्राइम रिपोर्टर जयदेव उर्फ जेडी (अतुल कुलकर्णी) से भी अहम सुराग मिलते हैं। विजय की तफ्तीश रंग लाती है और उसे तेजा (प्रकाश राज) के बारे में पता चलता है। लेकिन तेजा से टक्कर लेना इतना भी आसान नहीं है।

तेजा अपनी चालबाजियों से विजय को एक मामले में फंसा देता है और उसे पुलिस की नौकरी से सस्पेंड करा देता है। देखा जाए तो फिल्म कहानी में कुछ ज्यादा बदलाव न कर उसे तकरीबन ज्यों का त्यों रखा है। तेजा को मिलावटी पेट्रोल-डीजल का सौदागर दिखाया गया और शेरखान को पुरानी कारों का डीलर। माला एक एनआरआई युवती है, जो भारत अपनी एक सहेली की शादी में आयी है। तेजा की दुमछल्ली मोना डार्लिंग (माही गिल) का रोल बेहद फनी है। वो हाथ में काम शक्ति बढ़ाने वाली दवाएं लेकर घूमती रहती है। वैसे तेजा भी कुछ कम फनी नहीं है। वो बुरे काम करने वाला एक शैतान कम बल्कि कामातुर ज्यादा दिखाई देता है।

जाहिर है कि इन सबके बीच विजय के रूप में यंग एंग्री मैन का इफेक्ट कहीं खो सा गया है। फिल्म कुछ हिस्सों में ही अच्छी है। वो भी प्रकाश राज के फनीअंदाज की वजह से। तेजा के स्क्रीन पर होने के दौरान पाश्र्व में बजता संगीत जरूर ध्यान खींचता है। पूरी फिल्म नब्बे के दशक की किसी एक्शन फिल्म की तरह है। कुछ खास नहीं है, जिसे उत्सुकता से बयां किया जा सके। प्रियंका चोपड़ा ने इस फिल्म के प्रोमोशन के दौरान ठीक ही कहा था-‘हमारी औकात नहीं है कि हम जंजीर का रीमेक बना सकें।Ó

You might also like

Comments are closed.