वेस्ट बैंक के लिए अवश्य उचित कार्यवाही हो : शफाकत अली

Appropriate action must be taken for West Bank: Shafqat Ali

– वेस्ट बैंक से लौटे कैनेडियन सांसद ने कहा कि संबंधित क्षेत्र में फिलीस्तीनियों की हालत अत्यंत दयनीय हैं, दुनिया को उनकी सुरक्षा के लिए आगे आना चाहिए

Appropriate action must be taken for West Bank: Shafqat Ali
टोरंटो। वेस्ट बैंक की यात्रा से लौटे सांसदों में से एक लिबरल सांसद शफाकत अली ने मीडिया को बताया कि फलीस्तीनियों और ईजराईलों के बीच चल रहे युद्ध को जल्द ही रोकना होगा, क्योंकि यह समस्या अब मानव संवेदनाओं से ऊपर हो गई हैं। ज्ञात हो कि पिछले दिनों वेस्ट बैंक में रह रहे फिलीस्तीनियों की दशा को जानने के लिए तीन एनडीपी और दो लिबरल सांसदों का एक दल संबंधित क्षेत्र में स्थिति का जायजा लेने पहुंचा, जिसमें यह देखा गया कि वहां के शिविरों और अन्य अस्थाई आवासों में रह रहे फलीस्तीनियों की दशा बहुत अधिक खराब हैं, जहां उन्हें खुले में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा हैं, वहीं सबसे अधिक खाने-पीने का संकट गहरा होता जा रहा हैं। व्यस्कों के साथ-साथ अब बुजुर्गों और बच्चों को भी रहने-खाने की अत्यधिक कमियों का सामना करना पड़ रहा हैं। पिछले कुछ दिनों में ही 1200 लोगों को इस युद्ध में मार दिया गया हैं, जबकि 200 से अधिक को अभी भी बंधक बनाया गया हैं।

ज्ञात हो कि गत नवम्बर में एक कैनेडियन यहूदी संगठन इजराइल शांति वार्ता के लिए भी गया था, जिसमें लिबरल और कंसरवेटिव सांसदों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी, उन्होंने हमास में घातक हमले के संबंध में गहन चर्चा कर अपील करते हुए कहा था कि इजरायल को आपतिक स्थिति में इसे तुरंत बंद करना चाहिए। संरा ने यह भी माना कि जॉर्डन में इजरायल द्वारा 1948 में एक रिफ्यूजी शिविर का निर्माण किया था जिसमें अनेक फिलीस्तीनी शरणार्थी आवास करते हैं।

जाहिद ने यह भी बताया कि संरा अधिकारियों के अनुसार उनके कर्मचारियों द्वारा इस शिविर में शरणार्थियों के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा भी दी जा रही हैं, लेकिन इन हमलों के कारण यह सुविधा फिलहाल बंद कर दी गई हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस समय जॉर्डन में इजरायल के प्रतिबंधों के कारण वहां के लोग बच्चों की किताबें जलाकर जीवन-यापन कर रहे हैं, क्योंकि इजरायल ने यहां खाना व ईंधन बंद रखने के आदेश जारी कर दिए हैं।

इजरायल और फलस्तीन के बीच विवाद कोई नया नहीं है। साल 2021 में भी दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात पनपे थे। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी। ठीक ऐसा ही दृश्य एक बार फिर से शनिवार तड़के देखने को मिला। हमास ने गाजा पट्टी से हजारों रॉकेट दागे, वहीं इजरायल ने भी जवाबी कार्रवाई की। इजरायल और फलस्तीन के बीच विवाद कोई नया नहीं है। सबसे पहले हम इसकी भूगोलीय स्थिति के बारे में समझते हैं।

दरअसल, इजरायल के पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम हिस्से में दो अलग-अलग क्षेत्र मौजूद हैं। पूर्वी हिस्से में वेस्ट बैंक और दक्षिण-पश्चिम हिस्से में एक पट्टी है, जिसे गाजा पट्टी के तौर पर जाना जाता है। वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी को ही फलस्तीन माना जाता है। हालांकि, वेस्ट बैंक में फलस्तीन नेशनल अथॉरिटी सरकार चलाती है और गाजा पट्टी पर हमास का कब्जा है, जो इजरायल विरोधी एक चरमपंथी संगठन है।

भले ही इजरायल के प्रधानमंत्री यह कह रहे हो कि हम युद्ध में हैं और हमास को अंजाम भुगतने की चेतावनी दे रहे हो, लेकिन हमास को तो जरा सा भी फर्क नहीं पड़ रहा और वह लगातार गोलीबारी कर रहा है। दरअसल, हमास इजरायल को देश के तौर पर देखता ही नहीं है और उसे निशाना बनाता रहता है, जबकि इजरायल और अमेरिका हमास को एक चरमपंथी संगठन मानते हैं। साथ ही हमास को नेस्तनाबूत करने की मंशा रखते हैं। फलस्तीन अरबी और बहुसंख्य मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां की आबादी तकरीबन 20 लाख है। साल 1947 के बाद संयुक्त राष्ट्र ने फलस्तीन को यहूदी और अरब राज्य में विभाजित करने के लिए मतदान किया था, जिसके बाद से छह मार्च, 1948 को अरब और यहूदियों के बीच पहला संघर्ष हुआ और तब से लेकर आज तक फलस्तीन और इजरायल के बीच संघर्ष जारी है।

यह विवाद तकरीबन 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य को हराने के बाद ब्रिटेन ने पश्चिम एशिया के इस हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था, जिसे फलस्तीन के नाम से जाना जाता है। यह वो दौर था जब इजरायल की स्थापना नहीं हुई थी और वेस्ट लैंड से लेकर गाजा पट्टी तक का इलाका फलस्तीन का हिस्सा था। यहां पर यहूदी और अरब रहा करते थे।

धीरे-धीरे यहूदियों और अरब लोगों के बीच में अपने लोगों के लिए देश बनाने की मांग उठने लगी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी ब्रिटेन से यहूदी लोगों के लिए फलस्तीन को स्थापित करने की बात कही। दूसरी ओर बहुसंख्यक अरब अपने लोगों के लिए फलस्तीन नाम से एक नया देश बनाने की मांग कर रहे थे। यही से शुरुआत इस विवाद का जन्म हुआ, जो बदस्तूर जारी है। फलस्तीन और इजरायल के बीच का विवाद तो अंग्रेज भी नहीं सुलझा पाए थे। इसी वजह से उन्होंने 1948 में फलस्तीन को उसी के हाल पर छोड़ दिया और वहां से चले गए।

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यहूदी नेताओं ने मिलकर इजरायल की स्थापना का एलान किया। जिसका फलस्तीनियों ने जमकर विरोध किया और पड़ोसी अरब देशों ने तो हमला भी बोल दिया था। युद्ध के बीच कई फलस्तीनियों को अपना घर छोडऩा पड़ा और फलस्तीन के ज्यादातर हिस्से पर इजरायल ने कब्जा कर लिया था। युद्ध के बाद जार्डन ने वेस्ट बैंक और मिस्र ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया, जबकि यरूशलम के पश्चिमी हिस्से पर इजरायल का नियंत्रण स्थापित हो गया था।

सनद रहे कि 2006 में हमास ने गाजा पट्टी पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया और 2007 के अंत में इजरायल ने गाजा पट्टी पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। इजरायल के प्रतिबंध से गाजा पट्टी में रहने वाले फलस्तीनी काफी नाराज हुए और उन्होंने इसका विरोध भी किया, लेकिन इजरायल ने जनवरी 2008 में हुए हमलों के बाद गाजा पर और प्रतिबंध लगा दिए। इजरायल-फलस्तीन विवाद दुनिया के सबसे जटिल और संवेदनशील मुद्दों में से एक है। इस विवाद की वजह से दोनों पक्षों को हिंसा, विस्थापन और पीड़ा का सामना करना पड़ा।

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इजरायली और फलस्तीन दोनों के इस भूमि से गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं और दोनों की ही अपनी शिकायतें भी हैं। इजरायली सेना ने गाजा पट्टी के कई ठिकानों को निशाना बनाकर हमला किया। हमास द्वारा इजरायल के खिलाफ एक नए सैन्य अभियान के एलान के बाद यरूशलम में हवाई हमले के लिए सतर्क करने वाले सायरनों की आवाज सुनाई दे रही है। इजरायल ने रॉकेल रोधी प्रणाली को एक्टिवेट कर दिया है। इससे पहले हमास ने दावा किया कि उसने इजरायल में 5,000 से अधिक रॉकेट दागे हैं।

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