कई देशों में मौजूद है लिंगभेद की भावना :सर्वे

लंदन । लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की पहल के 20 साल बाद भी तमाम देशों में ऐसे कानून हैं जो महिलाओं को दोयम दर्जे का मानते हैं। अधिकार समूह इक्वलिटी नाउ ने भारत से लेकर रूस तक तमाम देशों के ऐसे कानूनों को लेकर अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए सरकारों को इन कानूनों की समीक्षा करने की अपील की है।

गौरतलब है कि 1995 में 14 फरवरी के दिन दुनियाभर के 189 देशों के बीच बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर वूमेन पर सहमति बनी थी। इसके तहत सभी देशों ने ऐसे कानूनों को खत्म करने की बात कही थी, जिनमें किसी भी तरह से लैंगिक भेदभाव किया गया हो। इक्वलिटी नाउ के लंदन निदेशक जैकी हंट ने कहा, ‘हम दिखाना चाहते हैं कि कैसे महिलाओं को बच्चों और संपत्ति की तरह माना जाता है। किस तरह से उन्हें कुछ खास भूमिकाओं में बांधा गया है और इन भूमिकाओं को कानून की शक्ल दे दी गई है।’

उन्होंने कहा कि हम सरकारों को इन वादों की याद दिलाना चाहते हैं। हंट ने कहा कि महिलाओं को समानता दिलाने के लिए पहला कदम यह होगा कि एक मजबूत कानून सुनिश्चित किया जाए। रिपोर्ट में हालांकि इस बात का भी उल्लेख है कि 1995 में बनी सहमति के बाद से इस दिशा में काफी प्रगति हुई है और कई ऐसे कानून खत्म हुए हैं, जिनमें लैंगिक आधार पर भेद किया गया था।दस देशों के 10 शर्मनाक कानून

माल्टा : किसी महिला का अपहरणकर्ता अगर उससे शादी कर ले, तो उस पर मुकदमा नहीं चल सकता।

-सऊदी अरब : महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं।

ईरान : पुरुष को अपनी गोद ली हुई 13 साल से बड़ी बेटी से शादी की अनुमति।

-भारत : पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं।

-नाइजीरिया : बीवी की गलती सुधारने के लिए उसे पीटना जायज।

-रूस : ट्रेन व ट्रक चालक से लेकर नाविक या अग्निशमन दस्ते में काम करने समेत 456 नौकरियां महिलाओं के लिए नहीं।

-यमन : पत्नी अगर स्वस्थ है तो पति को शारीरिक संबंध के लिए नहीं रोक सकती और बिना किसी वैध कारण के पति को बताए बिना मायके नहीं जा सकती।

-लेबनान : दुष्कर्मी यदि पीडि़ता से शादी कर ले तो मुकदमे से बरी।

-कांगो गणराज्य : पत्नी हर हाल में पति के आदेश मानने को बाध्य।

-केन्या : इस्लामिक कानून के अंतर्गत पहली पत्नी की मर्जी के बिना बहुविवाह की इजाजत।

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