.तो हर 10 वर्ष में तबाही मचाएगा मानसून

1849953नई दिल्ली। वैसे तो मानसून को भारतीय कृषि व अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, लेकिन आने वाले दिनों में इसका कहर झेलने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। इस वर्ष मानसून ने पूरे उत्तर भारत में जो कहर बरपाया है वैसा अभी तक सौ वर्षो में सिर्फ एक बार देखने को मिलता है। लेकिन, अब ऐसा हर दस वर्ष में देखने को मिल सकता है। मानसून के इस बदले मिजाज का अंदाजा विश्व बैंक की तरफ से बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में लगाया गया है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और इसके क्षेत्रवार असर का आकलन किया गया है जो काफी भयभीत करने वाला है।
रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वर्ष 2040 तक भारत के खाद्यान्न उत्पादन में काफी गिरावट आ सकती है। देश का 60 फीसद खाद्यान्न उत्पादन मानसून आधारित है। 2050 तक अगर वैश्विक तापमान में दो से ढाई फीसद तक वृद्धि होती है तो गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियों के जलस्तर में काफी गिरावट आ सकती है। इससे 6.3 करोड़ लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा पर संकट पैदा हो सकता है। जलस्तर में कमी कई अन्य समस्याओं को भी पैदा करेगा।
विश्व बैंक ने एक बेहद प्रतिष्ठित संस्थान से यह अध्ययन करवाया है और रिपोर्ट तैयार करने में 25 वैज्ञानिकों की मदद ली गई है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2090 तक वैश्विक तापमान में अगर चार फीसद की वृद्धि होती है तो इससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर काफी असर पड़ेगा। इस हिस्से में बाढ़, सूखा, समुद्र स्तर में वृद्धि, ग्लेशियर के पिघलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। पूरे दक्षिण एशिया में 2040 तक खाद्यान्न उत्पादन में 40 फीसद तक गिरावट आ सकती है। तापमान में बढ़ोतरी कई तरह की स्वास्थ्य परेशानियों को भी जन्म देगी।
रिपोर्ट में बांग्लादेश के साथ मुंबई और कोलकाता पर सबसे विपरीत असर पडऩे की आशंका जताई गई है। विश्व बैंक के निदेशक (भारत) ओनो रूहल ने कहा, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे यादा खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ सकता है। इससे भारत में पिछले कई वर्षो से जारी प्रगति पर पानी फिर सकता है। सरकार को इन हालात से निपटने के लिए लगातार कोशिश करनी चाहिए।
रिपोर्ट कहती है कि आने वाले दिनों की तमाम समस्याएं दूर करने के लिए मौजूदा वैश्विक तापमान में दो फीसद की गिरावट लाना जरूरी है। इसके लिए सरकार को कार्बन उत्सर्जन कम करने की व्यापक रणनीति बनानी होगी। पर्यावरण माकूल कृषि को बढ़ावा देकर आपदा प्रबंधन ढांचा, स्वास्थ्य एवं बाढ़ नियंत्रण समेत तमाम क्षेत्रों के लिए रणनीति बनानी होगी।

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