पाक -चीन परियोजनाएं बीजिंग की रणनीति का हिस्सा?

नई दिल्ली. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने चीन के अपने दौरे के दौरान बीजिंग के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए। ये समझौते पाकिस्तान की जर्जर अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने को लक्षित हैं। इन समझौतों में पश्चिमोत्तर चीन के काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को जोडऩे के लिए 2000 किलोमीटर का सडक़ संपर्क और सिनजियांग में चीन की सीमा से रावलीपिंडी के बीच 820 किलोमीटर लम्बा फाइबर ऑप्टिक संपर्क शामिल हैं। इन दोनों परियोजनाओं के भारत पर रणनीतिक असर हो सकते हैं।
प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली ही विदेश यात्रा में नवाज शरीफ ने पाकिस्तान-चीन संबंधों को हिमालय से ऊंचा, समंदर से गहरा और शहद से भी मीठा बताया है। उनका दौरा ऐसे समय में हुआ है, जब रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी भी चीन के दौरे पर थे।
दोनों देशों के बीच 18 अरब डॉलर के जिस आर्थिक गलियारे को शरीफ ने पाकिस्तान के लिए परिवर्तनकारी बताया है, उसमें भी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरने वाली 200 किलोमीटर लंबी एक सुरंग शामिल होगी। शरीफ ने कहा है कि अगले पांच सालों में इस परियोजना को पूरा करवाने के लिए दोनों देश मिलकर एक कार्य दल गठित करेंगे।
पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को फरवरी में चीन की एक सरकारी कंपनी को सौंप दिया गया है। यह बदरगाह अरब सागर और स्ट्रेट ऑफ होरमज से जुड़ा हुआ है। इन समुद्री मार्गों से दुनिया के एक-तिहाई तेल की ढुलाई होती है। चीनी कंपनी, हुवेई टेक्रोलॉजीज कम्पनी लिमिटेड को अगले तीन वर्षों में रावलपिंडी को फाइबर ऑप्टिक सम्पर्क से जोडऩे की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस पर आने वाली 4.4 करोड़ डॉलर की लागत में से 85 प्रतिशत हिस्सा बीजिंग से आएगा।
रणनीतिक विश्लेषक कोमोडोर(सेवानिवृत) सी. उदय भास्कर ने आईएएनएस से कहा, ”पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से परिवहन गलियारे के गुजरने के अपने तर्क हैं- वह यह कि चीन ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर भारत के दावे को खारिज कर दिया है, और इस तरह यह इस क्षेत्र पर पाकिस्तानी रुख की स्पष्ट स्वीकारोक्ति भी है।ÓÓ

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