आज सेवानिवृत्त होंगे सीजेआइ लोढ़ा

नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढ़ा शनिवार को सेवानिवृत हो जाएंगे। उनकी जगह जस्टिस एचएल दत्तू भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभालेंगे। सेवानिवृत होने से पहले जस्टिस लोढ़ा ने एक बार फिर सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कोलेजियम व्यवस्था की तरफदारी की है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायाधीश ही सबसे बेहतर चयन कर सकते हैं क्योंकि उन्हें नियुक्त किए जाने वाले न्यायाधीश के बारे ज्यादा मालूम होता है। नियुक्ति में बाहरी व्यक्ति के शामिल होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि ये उनके निजी विचार हैं और विचार सबके अलग भी हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि संसद ने उचित समझते हुए ही नया कानून पारित किया है। न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्ति के बाद संवैधानिक या सरकारी पद ग्रहण करने पर चल रही बहस के बीच सीजेआइ लोढ़ा ने साफ कर दिया है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद कोई संवैधानिक या सरकारी पद ग्रहण नहीं करेंगे। जस्टिस लोढ़ा शनिवार को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

गौरतलब है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम को पिछले दिनों केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। उनकी नियुक्ति के बाद से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के संवैधानिक या सरकारी पद ग्रहण करने पर बहस एक बार फिर ताजा हो गई थी। वह सेवानिवृत्ति से पहले पत्रकारों से बातचीत में एक बार फिर दोहराया कि उनके विचार से न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद संवैधानिक या सरकारी पद नहीं ग्रहण करना चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ कानून जैसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कानून व कुछ ट्रिब्यूनल के कानून हैं जिनमें सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की बात कही गई है ऐसे में व्यवस्था बदलने के लिए उन कानूनों में संशोधन करना पड़ेगा। जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि अगर ऐसा नहीं हो सकता तो उनका मानना है कि सेवानिवृत्ति के कम से कम दो साल तक तो न्यायाधीशों को किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर नहीं होना चाहिए।

फांसी की सजा समाप्त करने के मसले पर उन्होंने कहा कि जबतक यह सजा कानून का हिस्सा है कोर्ट ऐसी सजा देता है। ऐसे मसलों में निजी राय का कोई मायने नहीं है। हालांकि हमारे यहां यह सजा विरले मामलों में ही दी जाती है।

जब उनसे सवाल किया गया कि क्या वे भारत के पहले लोकपाल के रूप में दिखेंगे तो जस्टिस लोढ़ा ने साफ कहा, नहीं। ऐसा नहीं होगा। वे सेवानिवृत्ति के बाद किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर नहीं दिखेंगे। वे कुछ दिन आराम और सुकून से बिताएंगे। न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों पर उन्होंने कहा कि ऐसे मतभेद मजबूत लोकतंत्र की निशानी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि करीब 21 वर्ष के उनके न्यायाधीश के करियर में उन पर कभी राजनीतिक दबाव नहीं आया और न ही कभी किसी ने इस तरह की चीजों के लिए उनसे संपर्क किया। मुख्य न्यायाधीश ने अदालतों में 365 दिन काम करने की उनकी अवधारणा के पूरा न होने पर अफसोस जताया। उन्होंने कहाकि शायद वकीलों के संगठन उनकी मंशा को सही ढंग से नहीं समझ पाए।

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